Wednesday, January 17, 2018

मैं थका हुआ एक मजदूर और तुम्हारा प्रेमी हूँ

कितनी नफ़रत
और हिंसा फैल चुकी है
हमारे आस-पास
ख़बरों के शब्दों में विष घुल चुका है
समाचार वाचक भी चिल्ला रहा है 
जैसे वह हमें किसी निज़ाम की तरह हुक्म दे रहा हो
मन बेचैन हो उठता है
तन थक कर चूर होने के बाद भी नींद नहीं आती
आँखें भीग जाती है
और जुबान पर छा जाती है ख़ामोशी
सुबह उठ कर सूरज की किरणों को
ओस की बूंदों को चुमते हुए देखना चाहता हूँ
किन्तु ऐसा हो नहीं पाता
मैं बहुत दिनों से अधूरी पड़ी उस प्रेम कविता को
पूरा करना चाहता हूँ
जिसे तुम्हारे लिए शुरू किया था
पर ऐसा हो नहीं पाता
मेरी सारी इच्छाएं
एक मजदूर की इच्छा है
जो कभी पूरी नहीं होती
जबकि इस दुनिया में
सबसे अधिक श्रम वही करता है
और नगर में पकते शाहीभोज की महक से
अपनी रूह भर लेता है
अब बहुत थक चुका हूँ
विश्राम करना चाहता हूँ
और चाहता हूँ कि
तुम भी कभी भूले से
मुझे याद करो
किन्तु यह ज़रूरी नहीं
तुम मेरी इच्छानुसार कुछ करो
मैं थका हुआ एक मजदूर
और तुम्हारा प्रेमी हूँ
किसी सियासत का
हुक्मरान नहीं हूँ |

1 comment:

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...