Monday, April 4, 2016

तुम्हारी कविता

देर रात ...
सौंप दूंगा
तुम्हें,
तुम्हारी कविता |
अभी वो
सो रही है
मेरी डायरी में ....

No comments:

Post a Comment

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...