Saturday, September 26, 2015

पानी की गहराई का अंदाजा नहीं था उन्हें

पानी की गहराई का अंदाजा नहीं था उन्हें
वे धकेलना जानते थे
डूबता हुआ व्यक्ति लड़ता है
सांसों से जंग
निपूर्ण तैराक ही पा लेता है फ़तेह
बाकी सब डूब ही जाते हैं
गोताखोर कूद जाते हैं पानी में
पूरी तैयारी के साथ
तल से उठा लाते हैं लाश
सांसों से उसकी संघर्ष की कहानी कोई नहीं जान पाता
धकेलने वाला शायद ही शर्मसार होता हो
देखकर उसे
वह तसल्ली देता है मन को
और सोचता है
उसने तो दिल्लगी की थी
यह तो मरने वाले की गलती थी
जो तैरना नहीं जानता था ||

4 comments:

  1. धकेला गया आदमी क्या कभी जान पायेगा कि किसने उसे धकेला था...बच रहने की सम्भावना क्षीण है इस दौर में और गोताखोर लाशें निकालते हैं...सीधे-सादे आदमी ने कभी तैरना क्यों नहीं सीखा जबकि जमाने का चलन धक्का मारने वाला है...अच्छी कविता

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, महान समाज सुधारक राजा राम मोहन राय - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...