Monday, July 30, 2012

मैं खोज रहा हूँ ,कविता

वे खोज रहे हैं 
कविता में शिल्प और सौंदर्य 

मैं खोज रहा हूँ ,कविता
किसान के खेत में 
मजदूर के पसीने में
बच्चों की हंसी में
उजड़ चुके जंगल में
सूख चुकी नदी में

सभी जगह मिली मुझे
शिल्पहीन कविता
सौंदर्य के नाम पर
मिली मुझे सिर्फ गहरी वेदना ...

3 comments:

  1. भावमय करती प्रस्‍तुति

    कल 01/08/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' तुझको चलना होगा ''

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    Replies
    1. बहुत अच्छा लगा . शुक्रिया सदा जी .

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  2. संवेदना के खेत से उपजी वेदना जनपक्षधर है,कथ्य की प्रधानता है, अलख जगाती हुयी ...एक शशक्त अभिव्यक्ति...आपको बधाई ...

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इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...