यदि मिला कभी तुमसे ....
सुनाऊंगा अपनी कहानी फुर्सत से
....अब तक जो बुना था
ओढ़ कर सोने दो मुझे
सुनाऊंगा अपनी कहानी फुर्सत से
....अब तक जो बुना था
ओढ़ कर सोने दो मुझे
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
फिर कभी होगी कोई बात
ReplyDeleteअभी तो खुद से मिलने दो
शुक्रिया रशिम जी
Deleteवाह .. क्या बात है ...
ReplyDeleteआभार दिगम्बर जी
Deleteक्या बात हैं ......
ReplyDeleteशुक्रिया सुनील जी ..स्वागत है मेरे ब्लॉग पर आपका
Delete.अब तक जो बुना था
ReplyDeleteओढ़ कर सोने दो मुझे
....यूँ ही तो सपनों का ताना बाना नहीं बनता
..बहुत बढ़िया जज्बात..