Thursday, March 22, 2012

आत्मगान

यह आत्मगान का दौर है 
खुले स्वर में गा रहे हैं 
अपना -अपना राग 
वाह -वाही की लूट है 
उठा -पटक 
छल -कपट 
सब जायज है 

आत्मगान 
यानी खुद की स्तुति 

2 comments:

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...