कब तक देखूँगा तमाशा
मूक ,
निशब्द
मूर्ति बनकर
मूर्छित चेतना
निरंकुश व्यवस्था
कबतक सहेंगे
हम ये व्यवस्था ?
आओ उठाये
क्रांति मशाल
हम भी धरे रूप विशाल
स्थापित करे कोई नई मिसाल .................
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
Wah, Bahut khoob...
ReplyDeleteiraade nek...prarambh ho
सुंदर ... एक मिशाल अन्ना ने उठाई है ... आओ उसे पकडे ... गिरने न दे
Deleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
यह शांति है
ReplyDeleteकिसी संभावित अशांति की,
संभावित क्रांति की,
अभी यह केवल एक भ्रांति है।