कलतक चाँद पर
जो नानी दिखती थी
अब वह ..
और बूदी हो गयी है
नानी नहीं अब वह
परनानी हो गयी है
अब वह गरीब हो गयी है
इसीलिए ..
धरतीवालों को अपनी ज़मीन बेचने लगी है
पृथ्वी की आर्थिक मंदी से
चाँद वाली नानी भी प्रभावित है
किउन न हो
दोनों का रिश्ता जो है
आज नानी ज़मीन बेच रही है
कंही कल वह खुद को न बेच दे .
धरतीवालों का क्या भरोसा
कुछ भी खरीद बेच सकते हैं .
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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