Tuesday, November 10, 2009

नास्तिक हूँ फिर भी

नास्तिक हूँ
बावजूद इसके
भेजा था एक पत्र
उस काल्पनिक भगवान को
नही मालूम मुझे , कि
मैंने सही लिखा था उसका पता , या
ग़लत
मालूम नही उसे मिला कि नही अबतक
अपने लिए माँगा नही कुछ उस पत्र में मैंने
बस इतनी
गुजारिश की है मैंने , कि
अब कोई बिस्फोट न हो
इस धरती पर
मरे न कोई मासूम बेकसूर
और हो दुष्टों का नाश
बस
यही माँगा है
उस पत्र में
जो भेजा है मैंने उसे
अब तक कोई जबाव नही आया
न ही मेरा पत्र
लौट कर आया
और नही पूरी हुई मेरी तमन्ना
तो फिर क्या हुआ मेरे पत्र का
कहाँ पहुँचा आया डाकिया
मेरे पत्र को ?
क्या डाकिया को भी नही पता
उस भगवान का सही पता ?
या वो भी नास्तिक है मेरी तरह
इसीलिए
नही पंहुचाया मेरा पत्र उन तक
जो रहते हैं कंही
आस्मां के किसी कोने में
छुप कर
कोटि - कोटि मानव के मन में
आदर है उस भगवन के लिए
जो बसता है कहाँ नही मालूम उन्हें ।

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