अपनी सफलताओं , उपलब्धियों को
गिनना चाहता हूँ
कुछ नही
केवल शून्य पाता हूँ ।
निराश नही मैं
किंतु
ख़ुद को पराजित पाता हूँ मैं ।
रोज़ ख़ुद को देखता हूँ
आईने में
अपना चेहरा
बदला - बदला पाता हूँ मैं ।
अपनी पहचान खोने लगा हूँ मैं ।
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इक बूंद इंसानियत
सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...
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बरसात में कभी देखिये नदी को नहाते हुए उसकी ख़ुशी और उमंग को महसूस कीजिये कभी विस्तार लेती नदी जब गाती है सागर से मिलन का गीत दोनों पाटों को ...
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वे सारे रंग जो साँझ के वक्त फैले हुए थे क्षितिज पर मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में तुम्हारे लिए वर्षों से किताब के बीच में रख...
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