Saturday, October 31, 2009

मेरे जन्म की सज़ा

शायद यही सज़ा है
इसी तरह जीना है
उम्र भर मुझे
जन्म जो लिया मैंने
इस युग में
इस देश में ।

सदियों पहले
गौतम आए इस देश में
मोक्ष की तलाश में
उन्हें मिला सत्य
बन गए बुद्ध

फिर आए कई
गए कई
इस देश में
आने और जाने का सिलसिला
यूँही जारी रहा

अब मैं हूँ आया
जैसे आए हजारों
मेरे साथ
मेरे बाद
मैं जाना चाहता हूँ
बहुत दूर
जहाँ मिले मुझे आत्म ज्ञान
मिले जहाँ सबको सम्मान
जहाँ न हो कोई अपमान ।
किंतु
शायद ऐसी कोई
जगह नही बची
इस धरा पर आज
और
मुझे
इसी तरह जीना है
इस युग में ।

1 comment:

इक बूंद इंसानियत

  सपनों का क्या है उन्हें तो बनना और बिखरना है मेरी फ़िक्र इंसानों की है | कहीं तो बची रहे आँखों में इक बूंद इंसानियत तब हम बचा लेंगे इस धरती...