Tuesday, October 27, 2009

वर्दी वालों की हवा

खाकी का डर

आज भी जारी है बदस्तूर

मरती हैं आज भी जनता सरेआम बेक़सूर ।

आज भी करते हैं उन्हें हम

जी हजूर - जी हजूर

आज है जनता मजबूर

पहले से अधिक ।

गोरों की गुलामी बेहतर थी

इस बदतर आज़ादी से

तब गुलामी का बहाना था

आज़ादी का क्या बहाना ?

वेरिफिकेशन , पासपोर्ट और सब

जो हैं उनके हाथों में

होता नही कुछ भी

विना रिश्वत के ।

धरती के देवता समझते ख़ुद को मेरे देश के

खाकी वाले ।

उन्हें आता है

जब कोई बेक़सूर असहाय होकर

मांगता है अपने प्राणों की भीख

उनके आगे हाथ जोड़कर ।

ले जाकर थाने उसे

करते हैं उसकी पिटाई

गुजरात , मुंबई और पूरा भारत

गवाह है

मेरे देश में वर्दी वालों की हवा है ।

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